एक कंडोम जो न सिर्फ 200 साल पुराना है बल्कि कभी किसी लक्जरी फ्रेंच कोठे की ‘याद’ था, अब दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित म्यूजियम में ‘कला’ बनकर सज गया है. एम्स्टर्डम के Rijksmuseum में इस हफ्ते शुरू हुई एक खास एग्जीबिशन में यह कंडोम ग्लास केस के अंदर सेंटरपीस की तरह रखा गया है. दिलचस्प बात ये है कि ये कोई प्लास्टिक या रबर से बना मॉडर्न कंडोम नहीं, बल्कि 1830 के आस-पास का बनाया हुआ है. इसे शायद भेड़ की आंत से तैयार किया गया था.
कहां से आया ये ‘स्मृति चिन्ह’?इस कंडोम को पिछले साल नवंबर में नीदरलैंड्स के हारलेम शहर में एक ऑक्शन के दौरान खरीदा गया था. कीमत थी 1000 यूरो (करीब 90,000 रुपए). माना जा रहा है कि ये किसी हाई-एंड फ्रेंच कोठे से आया है, शायद पेरिस का. उस दौर में इसे ‘लक्जरी सॉवेनियर’ की तरह ग्राहकों को दिया जाता था.
इस पर एक बेहद अजीब लेकिन डिटेल्ड इरॉटिक इलस्ट्रेशन बना है – जिसमें एक अर्धनग्न नन तीन पादरियों के सामने खड़ी है और उनके जननांगों की ओर इशारा कर रही है. नीचे फ्रेंच में लिखा है – ‘Voila, mon choix’ यानी ‘देखो, ये है मेरी पसंद’.
क्या वाकई आर्ट है या सिर्फ तंज?
Rijksmuseum की क्यूरेटर जॉयस जेलेन बताती हैं कि ये इलस्ट्रेशन ग्रीक माइथोलॉजी की उस कहानी को रीफर करता है, जिसमें ट्रोजन प्रिंस ‘Judgment of Paris’ के दौरान तीन देवियों में से सबसे सुंदर को चुनता है. यानी जिस व्यक्ति ने ये कंडोम खरीदा होगा, वह शायद पढ़ा-लिखा और कला में रुचि रखने वाला रहा होगा.
Safe Sex? या Satire?
ये कंडोम अब Rijksmuseum की एक छोटी लेकिन बोल्ड एग्जीबिशन ‘Safe Sex?’ का हिस्सा है, जिसमें सेक्स वर्क, यौन स्वास्थ्य और प्राचीन यूरोपीय समाज में सेक्स के नजरिए को दर्शाने वाले प्रिंट्स और ड्रॉइंग्स रखी गई हैं. 19वीं सदी के यूरोप में चर्च और समाज कॉन्डोम को गुनाह की तरह देखते थे. भले ही उस वक्त सिफलिस जैसी बीमारियां तेजी से फैल रही थीं, लेकिन कॉन्डोम का इस्तेमाल छुपकर होता था – वो भी कोठों या बारबर शॉप्स में. कुछ रिपोर्ट्स के मुताबिक, कुछ अमीर दुकानों में ‘बेस्पोक’ कंडोम भी बनवाए जाते थे.
ये कभी यूज हुआ या नहीं?
UV लाइट से स्कैन करने पर रिसर्चर्स को शक है कि ये कंडोम कभी इस्तेमाल नहीं हुआ. इसकी लंबाई करीब 20 सेंटीमीटर है और इसे एक ‘प्रमोशनल सॉवेनियर’ की तरह डिजाइन किया गया था ताकि खरीदार को ‘स्पेशल’ फील हो.
जॉयस जेलेन का कहना है, ‘नन किस पादरी की तरफ इशारा कर रही है, ये साफ नहीं है. कोई गंजा है, कोई पतला, कोई मोटा. शायद यही मकसद था – हर तरह के मर्द को ये लगे कि ये उन्हीं के लिए बना है.’