Here every cup of tea brings the warmth of humanity, Raipur’s ‘Nukad Café’ is giving a new direction to the society

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Raipur Nukkad Tea Stall : रायपुर का ‘नुक्कड़ कैफे’ केवल चाय की दुकान नहीं, बल्कि सामाजिक बदलाव का प्रतीक है. यहां मूकबधिर, ट्रांसजेंडर और हाशिए पर जी रहे लोग काम करते हैं. कला, किताबें और संवेदना से भरे इस कैफे…और पढ़ें

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नुक्कड़

नुक्कड़ कैफ़े रायपुर

हाइलाइट्स

  • रायपुर का नुक्कड़ कैफे सामाजिक बदलाव का प्रतीक है
  • कैफे में मूकबधिर, ट्रांसजेंडर को रोजगार मिलता है
  • अब तक 200 से अधिक लोगों को रोजगार मिला है

रायपुर : छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर का ‘नुक्कड़ कैफे’ सिर्फ एक चाय की दुकान नहीं, बल्कि इंसानियत, समानता और आत्मसम्मान का जीवंत उदाहरण बन चुका है. भले ही ये कैफे शहर के बीचों-बीच एक कोने में बसा है, लेकिन इसकी सोच समाज की मुख्यधारा को बदलने का माद्दा रखती है. यहां आने वाले लोगों को चाय और कॉफी से ज्यादा वो माहौल मिलता है, जो उन्हें सोचने पर मजबूर कर देता है  कि किसी की ‘कमियां’ समाज से अलगाव का कारण नहीं, बल्कि उसकी खासियत बन सकती हैं.

नुक्कड़ कैफे में काम करने वाले सभी कर्मचारी वे हैं, जिन्हें समाज अक्सर हाशिये पर छोड़ देता है मूकबधिर युवा, ट्रांसजेंडर, या वे लोग जो किसी वजह से मुख्यधारा में जुड़ नहीं पाए. यहां ग्राहक और कर्मचारी के बीच संवेदनशीलता और नवाचार ही संवाद का जरिया है. ऑर्डर देने के लिए टेबल पर पेन और कागज़ रखा जाता है. अगर किसी कर्मचारी को बुलाना हो तो मोबाइल की फ्लैशलाइट से इशारा किया जाता है.

यह कैफे उन युवाओं और वरिष्ठ नागरिकों का ठिकाना बन चुका है, जो पढ़ने-लिखने और कला-संस्कृति से जुड़ना चाहते हैं. यहां बना पुस्तकालय ‘ज्ञानदाता’ अभियान का हिस्सा है, जिसमें किताबों का आदान-प्रदान किया जा सकता है. वहीं रंगभूमि में लोक कलाकारों को मंच मिलता है, जो अपनी सांस्कृतिक प्रस्तुतियों से कैफे के वातावरण में लोकगंध भर देते हैं. कैफे की दीवारों पर महान विचारकों की कविताएं, शहर की जीवनशैली पर आधारित चित्रकारी और छत्तीसगढ़ी संस्कृति की झलक साफ देखी जा सकती है. पहली मंजिल पर छत्तीसगढ़ी बैठक व्यवस्था और रसोई, आदिवासी ‘गोदना’ आर्ट और खादी में पिरोई परंपरा, इस जगह को एक सांस्कृतिक केंद्र का रूप देती हैं.

सैकड़ों लोगों को मिला रोजगार

नुक्कड़ कैफे की सबसे बड़ी खासियत यह है कि अब तक यहां से 200 से अधिक लोगों को रोजगार मिला है, जिनमें बड़ी संख्या में दिव्यांग और ट्रांसजेंडर शामिल हैं. यह केवल एक संस्थान नहीं, बल्कि एक बदलाव की शुरुआत है. इस अनोखी पहल के जनक इंजीनियर प्रियंक पटेल हैं, जिन्होंने दिल्ली की नौकरी छोड़ 2013 में ‘नुक्कड़’ की नींव रखी. उन्हें दिव्यांगजन सशक्तिकरण में उत्कृष्ट योगदान के लिए राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित किया गया है.

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चाय बना बदलाव का जरिया, रायपुर का ये कैफे दे रहा है इंसानियत को नई पहचान

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