न मशीन, न केमिकल! ये ‘ई-बॉल’ अपने आप तालाब को रखती है साफ, जानिए कैसे

छत्तीसगढ़ की धरती से एक ऐसा युवा वैज्ञानिक सामने आया है, जिसे अब लोग सम्मान से “जल पुरुष” कहने लगे हैं. विज्ञान और तकनीक के इस युग में, जहां समस्याओं का हल अक्सर भारी-भरकम मशीनों और महंगे केमिकल्स में खोजा जाता है, वहीं सरगुजा के डॉ. प्रशांत ने सादगी और समझदारी से ऐसा काम कर दिखाया है जो पूरे देश के लिए मिसाल बन चुका है.

13 साल की रिसर्च और समर्पण से उन्होंने एक अनोखी खोज की ई-बॉल. यह एक साधारण दिखने वाली गेंद, जिसमें लाखों माइक्रोब्स की शक्ति छिपी है, नालियों और गंदे तालाबों को न सिर्फ साफ करती है बल्कि उन्हें सालों तक प्राकृतिक रूप से स्वच्छ बनाए रखने में मदद करती है.

ई-बॉल: जल संरक्षण की जैविक क्रांति
अंबिकापुर नगर निगम के सहयोग से किए गए पहले प्रयोग ने ही कमाल कर दिया. गंदगी से भरे तालाब, दुर्गंध देती नालियाँ, जहाँ मशीनें और केमिकल फेल हो जाते थे वहाँ ई-बॉल ने चमत्कार कर दिखाया. पानी का BOD, COD और pH लेवल जाँचने पर सामने आया कि ई-बॉल से ट्रीट किए गए जल को वैज्ञानिक रूप से पीने योग्य माना जा सकता है.

कम लागत, ज़्यादा असर
जहाँ एक एकड़ तालाब को मशीनों से साफ करने में 2 से 3 लाख रुपये खर्च होते हैं, वहीं ई-बॉल से वही काम सिर्फ 7 हज़ार रुपये में सालभर तक हो जाता है. इतना ही नहीं, यह समाधान इको-फ्रेंडली भी है. न पर्यावरण को नुकसान, न जलचरों को कोई खतरा.

माइक्रोब्स की आत्मनिर्भर कॉलोनी
ई-बॉल की सबसे बड़ी खासियत ये है कि इसमें मौजूद माइक्रोब्स पानी में जाकर खुद की कॉलोनी बनाते हैं, जो सालों तक पानी की सफाई का काम करती रहती है. मतलब, एक बार डालिए और तालाब खुद अपनी सफाई करता रहेगा. यह स्थायी समाधान है, अस्थायी जुगाड़ नहीं.

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