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Delhi Munak canal: मुनक नहर दिल्ली की जल आपूर्ति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. फिर भी इसे ‘खूनी नहर’ कहा जाता है. चलिए आपको बताते हैं कि आखिर क्यों इस नहर में इतनी लाशें मिलती हैं.

बवाना नहर (image credit-X)
हाइलाइट्स
- दिल्ली की वाटर लाइफ लाइन फिर भी कहलाती है खूनी नहर
- आए दिन डूबते मिलते हैं शव
- अब तक इस नहर में मिल चुके हैं 91 शव
Delhi Munak canal: दिल्ली की एक ऐसी नहर जिसे दिल्ली की वाटर लाइफ लाइन तो माना जाता है, लेकिन इस नहर ने न जाने कितने लोगों के खून भी पिए हैं. जी हां हम बात कर रहे हैं बवाना नहर की. इस नहर को लोग खूनी नहर के नाम से भी जानते हैं. बवाना नहर में आए दिन लाशों का डेरा लगा रहता है. शव भी ऐसे कि किसी का सिर नहीं तो किसी का पैर नहीं. ये लाशें इतनी भयानक हालत में होती हैं कि कई बार तो इनकी पहचान नहीं हो पाती. हाल ही में इस नहर में एक और शव मिला जिसका सिर गायब था और हाथ-पैर धड़ से अलग. यही कारण है कि इस इलाके के लोगों को लाशें देखना तो मानो आदत में आ गया है. चलिए आपको बताते हैं इस नहर की असल कहानी.
शाम के करीब 10 बजे का वक्त था. रोहिणी सेक्टर 13 में स्थित हैदरपुर वॉटर प्लांट में एक कर्मचारी रोज की तरह जांच कर रहा था कि अचानक उसकी नजर लोहे की छन्नी पर फंसी एक चीज पर पड़ी. यह किसी शव का हिस्सा था, लेकिन सिर और हाथ-पैर गायब थे. लेकिन लाश के मिलने पर न कोई चीख, न अफरा-तफरी, वजह? क्योंकि ये इस साल का 10वां शव था जो यहां मिला था. जी हां दिल्ली के इस वॉटर ट्रीटमेंट प्लांट में लाशें मिलना अब ‘नॉर्मल’ हो चला है. 2022 से लेकर 27 अप्रैल 2025 तक इस नहर में कुल 91 शव मिल चुके हैं. ये आंकड़ा हर साल औसतन 25 से 30 तक पहुंच जाता है.
कहां से आती हैं ये लाशें?
कहां से आती हैं ये लाशें, इस रहस्य का जवाब है मुनक नहर. हरियाणा के करनाल से निकलने वाली यह नहर 102 किलोमीटर लंबी जलधारा दो हिस्सों सीमेंटेड CLC और कच्ची DSB से होकर दिल्ली के हैदरपुर वॉटर प्लांट तक पहुंचती है. रास्ते में न कोई सुरक्षा, न रोकथाम, न निगरानी. इस वजह से हरियाणा या दिल्ली के अलग-अलग हिस्सों में नहर में फेंकी गई लाशें अंत में यहीं पहुंच जाती हैं.
नहीं हो पाती शवों की पहचान
KN कटजू मार्ग थाने के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया, हत्या कर शव ठिकाने लगाने से लेकर सबूत मिटाने के लिए हथियार और गाड़ियां भी इसी नहर में फेंकी जाती हैं. डीसीपी रोहिणी अमित गोयल का कहना है कि, ‘हर महीने दो-तीन ऐसे मामले आते हैं जिनमें शव मिलते हैं. हमारे पुलिसकर्मी पीड़ितों की पहचान, उनके परिवार की खोज, मौत की वजह और हत्यारे की गिरफ्तारी से लेकर अंतिम संस्कार तक की जिम्मेदारी निभाते है.’ हालांकि कई मामलों में शव की पहचान नहीं हो पाती.
आखिरी पहचान वाला शव 23 अप्रैल 2025 को मिला. इस शव की पहचान 27 वर्षीय अनूप के रूप में की गई. अनूप की गुमशुदगी की शिकायत होली के अगले दिन बवाना थाने में दर्ज की गई थी. पुलिस ने उसके कपड़ों से मिले दो आधार कार्ड की मदद से परिवार को बुलाया और शव की पहचान हुई. पोस्टमार्टम में साफ हुआ कि वह करीब 40 दिन पहले डूबा था और इसी वजह से उसका शव बुरी तरह गल चुका था. बता दें पिछले तीन सालों में मिले कुल 91 शवों में से सिर्फ 28 की ही पहचान हो पाई है.
क्यों नहीं हो पाती शवों की पहचान
SHO प्रमोद आनंद बताते हैं, ‘हत्या के मामलों में आरोपी शव की पहचान मिटाने के लिए अलग-अलग हथकंडा अपनाते हैं कभी चेहरे को बिगाड़ देना, अंगों को बांध देना, भारी चीज से बांधकर डुबो देना. कई बार शव का सिर ही गायब होता है, और जो सिर मिलते हैं, वो भी पहचान के लायक नहीं होते.’ वहीं आत्महत्या करने वाले अधिकतर लोग अपने पहचान-पत्र नहीं रखते. यही कारण है कि कई बार इन शवों की पहचान नहीं हो पाती.