रूस के पांचवीं पीढ़ी के स्टील्थ फाइटर Su-57E को लेकर एक बार फिर सवाल उठ रहे हैं. रूस भले ही इसे भारत, मलेशिया और अल्जीरिया जैसे देशों को बेचने की लगातार कोशिश कर रहा है, लेकिन हकीकत यह है कि अब तक इस विमान को लेकर किसी देश ने कोई डील पक्की नहीं की है.
LIMA 2025 शो में Su-57E की गैर-मौजूदगी, भारत का पुराने FGFA प्रोजेक्ट से बाहर निकलना, और मलेशिया के MRCA प्रोग्राम में इसकी अनदेखी – सब मिलकर यह संकेत दे रहे हैं कि यह ‘फेलॉन’ शायद रूस के लिए एक ‘फेलियर’ साबित हो रहा है.
क्या है Su-57E?
रूस ने दावा किया था कि Su-57E का पहला विदेशी ग्राहक 2025 में इसे चलाने लगेगा. हालांकि उसने इस देश का नाम नहीं लिया. अटकलें लगाई जा रही हैं कि यह देश अल्जीरिया हो सकता है. हालांकि अब तक न तो रूस और न ही अल्जीरिया सरकार ने इस समझौते की आधिकारिक पुष्टि की है.
मलेशिया का लड़ाकू विमान (MRCA) कार्यक्रम सालों से पेंडिंग है और अब तक किसी अंतिम फैसले पर नहीं पहुंचा है. 2009 में शुरू हुए इस कार्यक्रम का मकसद मलेशियन एयरफोर्स के पुराने MiG-29 विमानों को बदलना था. हालांकि शुरुआत में यूरोफाइटर टाइफून, डसॉल्ट राफेल, साब ग्रिपेन और बोइंग एफ/ए-18 सुपर हॉर्नेट जैसे विमान शामिल थे, लेकिन हालिया वर्षों में उसका फोकस बदलकर पांचवीं पीढ़ी या उसके करीब के विमानों पर हो गया है.
‘राफेल का भी बाप Su-57’
रूस ने फरवरी 2025 में Aero India शो के दौरान फिर से भारत को ‘Golden Deal’ का प्रस्ताव दिया. इसके तहत उसने Su-57E की जल्द सप्लाई, भारत में ही इसके निर्माण और भारत के अपने 5वीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान कार्यक्रम (AMCA) में मदद का ऑफर दिया था. रूस ने यह भी कहा कि अगर भारत इस सौदे को मंजूरी देता है, तो Su-30MKI बनाने वाली भारतीय कंपनियां जल्द ही Su-57E का उत्पादन शुरू कर सकती हैं.
भारत पर कैसे डाल रहा डोरे?
हालांकि, भारत की ओर से ऐसी किसी संभावना पर न तो कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया आई है और न ही किसी रूचि का संकेत मिला है. साफ है कि Su-57E की राह आसान नहीं है. ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले वर्षों में यह विमान वास्तव में अंतरराष्ट्रीय रक्षा बाजार में अपनी जगह बना पाता है या नहीं.