Science News Today In Hindi | साइंस न्यूज़: हर साल 10 लाख मौतों वाले ‘सुपरबग’ पर वार! ऑस्ट्रेलियाई वैज्ञानिकों की गजब टेक्नोलॉजी

केनबरा: दुनियाभर में एक बैक्टीरिया ऐसा है जो इंसानों की जान का दुश्मन बन चुका है, नाम है स्टैफिलोकोकस ऑरियस. इसे ‘गोल्डन स्टैफ’ भी कहा जाता है. यह कोई मामूली जीवाणु नहीं है. अकेले इसकी वजह से हर साल करीब 10 लाख लोगों की मौत हो जाती है. इस ‘सुपरबग’ के खिलाफ जब एंटीबायोटिक्स भी हार मानने लगे तो वैज्ञानिकों को कुछ अलग सोचना पड़ा. और अब, मेलबर्न के रिसर्चर्स ने एक ऐसी टेक्नोलॉजी विकसित की है जो इस जानलेवा सुपरबग के खिलाफ निर्णायक हथियार बन सकती है.

क्या है ये नई टेक्नोलॉजी?

मेलबर्न स्थित पीटर डोहर्टी इंस्टीट्यूट फॉर इंफेक्शन एंड इम्युनिटी (Doherty Institute) के वैज्ञानिकों ने एक ऐसी तकनीक तैयार की है जिसे कहते हैं: रियल टाइम जीनोम सीक्वेंसिंग. आसान भाषा में समझें तो ये एक ऐसा टेस्ट है जो बैक्टीरिया का डीएनए लाइव ट्रैक करता है, वो भी मरीज के शरीर में रहते हुए.

इस तकनीक से डॉक्टर यह पता लगा सकते हैं कि कौन-सा बैक्टीरिया शरीर में मौजूद है, उसमें कौन-कौन से जेनेटिक म्यूटेशन (आनुवंशिक बदलाव) हुए हैं और कौन-सी दवाइयां उस पर काम नहीं करेंगी. मतलब, इलाज अब अंदाज़े पर नहीं, बल्कि पुख्ता जानकारी पर आधारित होगा.

कैसे अलग है ये पारंपरिक तरीकों से?

अब तक जो टेस्ट अस्पतालों में होते थे, वो सिर्फ इतना बता पाते थे कि कौन-सा बैक्टीरिया है. लेकिन, यह नहीं बता पाते थे कि वह कितना खतरनाक है या कितनी दवाओं से लड़ सकता है. रियल टाइम जीनोम सीक्वेंसिंग इस कमी को पूरा करती है.

इस तकनीक से न केवल इलाज को बेहतर बनाया जा सकता है, बल्कि यह भी पता चल सकता है कि संक्रमण किस तरह शरीर में फैल रहा है और कब उसका म्यूटेशन हुआ. ये टेस्ट मरीज के इलाज के दौरान भी लगातार जानकारी देता है, न कि इलाज खत्म होने के बाद.

स्टडी में क्या सामने आया?

नेचर कम्युनिकेशंस नामक जर्नल में छपी इस स्टडी में मेलबर्न के सात अस्पतालों से जुड़े मरीजों पर यह तकनीक टेस्ट की गई. रिसर्च में पाया गया कि जिन मरीजों में स्टैफिलोकोकस ऑरियस संक्रमण था, उनमें से एक-तिहाई मामलों में बैक्टीरिया ने इलाज के दौरान ही म्यूटेशन कर लिया था. मतलब, जो दवा पहले असरदार थी, वही कुछ दिनों बाद बेअसर हो गई.

एक मामले में मरीज का संक्रमण दो महीने तक काबू में था. जैसे ही दवाइयां बंद की गईं, बैक्टीरिया फिर से सक्रिय हो गया. इस बार पहले से 80 गुना ज्यादा ताकतवर बनकर. लेकिन रियल टाइम जीनोम सीक्वेंसिंग की मदद से डॉक्टरों ने समय रहते इलाज बदला और मरीज को बचा लिया.

भविष्य में क्या होगा?

इस टेक्नोलॉजी की सफलता के बाद विक्टोरियन अस्पताल अब दुनिया की पहली क्लिनिकल जीनोमिक सेवा शुरू करने जा रहे हैं, जहां गंभीर और इलाज-प्रतिरोधी मामलों में इस तकनीक का इस्तेमाल किया जाएगा.

क्यों जरूरी है ये खोज?

आज के समय में एंटीबायोटिक रेसिस्टेंस यानी दवाओं के खिलाफ बैक्टीरिया की प्रतिरोधक क्षमता एक वैश्विक संकट बन चुका है. WHO पहले ही चेतावनी दे चुका है कि अगर हालात नहीं सुधरे तो 2050 तक सुपरबग्स हर साल 1 करोड़ लोगों की जान ले सकते हैं. इसलिए, यह नई तकनीक सिर्फ एक मेडिकल इनोवेशन नहीं, बल्कि एक ग्लोबल हेल्थ ब्रेकथ्रू है. इससे न सिर्फ मरीजों को समय पर सही इलाज मिलेगा, बल्कि अस्पतालों में बैक्टीरिया के फैलाव को भी रोका जा सकेगा.

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