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Chhattisgarh News : छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले के नक्सल प्रभावित पानीडोबीर गांव में पहली बार एक निजी बैंक खुलने के साथ ही विकास की नई लहर शुरू हो गई है. सुरक्षाबलों के कैंप की स्थापना और लगातार सर्च ऑपरेशन से क्ष…और पढ़ें

कांकेर के पानीडोबीर में नया बैंक खुलने से खुशी की लहर है.
हाइलाइट्स
- पानीडोबीर में पहली बार निजी बैंक खुला.
- गाँव में पक्की सड़कें और पुल-पुलिया बने.
- सुरक्षा बलों की तैनाती से शांति और भरोसा बढ़ा.
कांकेर. छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले के कोयलीबेड़ा थाना क्षेत्र का पानीडोबीर कभी नक्सलियों के खौफ से कांपता था. लेकिन अब इसी गांव की तस्वीर बदल रही है. जहां पहले बंदूक की धमक थी, अब वहां बैंक की घंटी बज रही है, जवानों की सुरक्षा में विकास की नींव रखी जा रही है और ग्रामीणों की आंखों में पहली बार उम्मीद की चमक दिख रही है. सरकार के लगातार सर्चिंग ऑपरेशन और सुरक्षाबलों की तैनाती के बीच पानीडोबीर में पहली बार एक निजी बैंक की शुरुआत हुई है. यह एक प्रतीक बन गया है—भय से विश्वास की ओर बढ़ते छत्तीसगढ़ की. गांव तक चमचमाती सड़क पहुंच गई है, जो कभी केवल सपना थी. अब स्कूल, अस्पताल, बैंक और राशन जैसी बुनियादी सुविधाएं धीरे-धीरे धरातल पर उतर रही हैं.
बदला माहौल, बढ़ा भरोसा
स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि अब वह दिन गए जब गांव में घोर अंधेरा और डर का माहौल हुआ करता था. पहले सरकारी योजनाएं सिर्फ कागजों में थी, अब राशन कार्ड से लेकर शौचालय, सड़क और लोन तक सबकुछ गांव में ही मिल रहा है. लोगों का कहना है कि “पहली बार लग रहा है कि हम भी भारत के नागरिक हैं और सरकार हमारे साथ है.”
कांकेर, बीजापुर और दंतेवाड़ा जैसे जिलों में नया सवेरा
छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित इलाकों में सुरक्षा बलों की लगातार सर्चिंग और ऑपरेशन से नक्सलियों का प्रभाव तेजी से कमजोर हो रहा है. खासकर कांकेर, बीजापुर और दंतेवाड़ा जैसे जिलों में सुरक्षाबलों ने न केवल नक्सली ढांचों को तोड़ा है, बल्कि गांव-गांव में स्थायी कैंप बनाकर विकास की बुनियाद भी रखी है. पहले जहां भय और गोलियों की आवाजें आम थीं, अब वहां बच्चों की हंसी और स्कूल की घंटियां सुनाई देने लगी हैं. सड़कों, पुलों और बिजली जैसी सुविधाओं ने ग्रामीणों की जिंदगी आसान बना दी है. सरकारी योजनाओं का लाभ अब सीधा लोगों तक पहुंच रहा है. महिलाओं ने भी विकास में भागीदारी बढ़ाई है और स्वरोजगार से आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढ़ाए हैं. यह बदलाव न केवल रणनीतिक जीत है, बल्कि सामाजिक विश्वास की भी वापसी है. नक्सल का सफाया सिर्फ बंदूक से नहीं, विकास और विश्वास से भी हो रहा है.