Bilaspur News: ईंट और गारे से आत्मनिर्भरता की मिसाल पेश कर रहीं महिलाएं, मिल रही स्पेशल ट्रेनिंग

बिलासपुर. छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले के ग्रामीण अंचलों में बदलाव की एक नई इबारत लिखी जा रही है. जहां पहले महिलाएं सिर्फ घरेलू कामों तक सीमित थीं, वहीं अब वे निर्माण कार्यों में हाथ आजमा रही हैं और आत्मनिर्भरता की मिसाल बन रही हैं. एसबीआई ग्रामीण स्वरोजगार प्रशिक्षण संस्थान (RSETI), कोनी द्वारा दी जा रही नि:शुल्क तकनीकी प्रशिक्षण से महिलाएं राजमिस्त्री जैसे परंपरागत पुरुष प्रधान कार्यक्षेत्र में भी अपनी पहचान बना रही हैं. यह पहल न केवल महिलाओं के जीवन में आर्थिक बदलाव ला रही है बल्कि समाज में उनके प्रति सोच को भी नया आयाम दे रही है.

कोनी स्थित संस्थान में चल रहे एक माह के राजमिस्त्री प्रशिक्षण में 22 महिलाएं भाग ले रही हैं. इनमें तुर्काडीह गांव की ममता यादव और गायत्री खांडे लोकल 18 से कहती हैं कि उन्हें यहां न सिर्फ तकनीकी ज्ञान मिल रहा है बल्कि आत्मविश्वास भी बढ़ रहा है. ममता कहती हैं, ‘हमने कभी नहीं सोचा था कि हम जैसी ग्रामीण महिलाएं भी कुछ कर सकती हैं लेकिन अब लगता है कि हम खुद भी काम कर सकती हैं और दूसरों को भी सिखा सकती हैं.’

आजीविका की दिशा में एक मजबूत कदम
मानिकपुरी गांव की शांता मरावी लोकल 18 को बताती हैं कि वह हमेशा से स्वयं की कमाई करना चाहती थीं. जब उन्हें स्वयं सहायता समूह से इस प्रशिक्षण की जानकारी मिली, तो उन्होंने तुरंत हिस्सा लेने का निर्णय लिया. वह कहती हैं, ‘यहां रहने और खाने की पूरी सुविधा मुफ्त है, जिससे हम पूरी तरह से प्रशिक्षण पर ध्यान दे पा रहे हैं. अब हमें अपने ही गांव में प्रधानमंत्री आवास योजना ग्रामीण के तहत काम मिल सकेगा.’

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RSETI ग्रामीणों के सपनों का सच्चा साथी
संस्थान के निदेशक नरेंद्र साहू ने लोकल 18 को बताया कि RSETI का उद्देश्य बीपीएल परिवारों के युवाओं और महिलाओं को व्यावसायिक रूप से दक्ष बनाकर उन्हें आर्थिक रूप से सशक्त बनाना है. 18 साल से ज्यादा उम्र के बेरोजगार ग्रामीणों को दर्जी, ब्यूटी पार्लर, मशरूम उत्पादन, पशुपालन, जैविक खेती, वीडियोग्राफी, मोबाइल रिपेयरिंग, बेकिंग, बागवानी और ज्वेलरी मेकिंग जैसे विभिन्न ट्रेडों में प्रशिक्षण दिया जाता है. प्रशिक्षण के बाद बैंक लिंकेज के माध्यम से उन्हें ऋण सुविधा भी मिलती है, जिससे वे स्वरोजगार की ओर बढ़ सकें.

गांव की महिलाएं बदल रहीं सामाजिक सोच
यह प्रशिक्षण कार्यक्रम न केवल आर्थिक बदलाव का जरिया है बल्कि सामाजिक दृष्टिकोण में बदलाव का भी संकेतक है. अब ग्रामीण महिलाएं केवल रसोई तक सीमित नहीं रहीं, वे ईंट-गारे से घर भी बना रही हैं और अपने भविष्य की नींव भी. इससे उनका आत्मविश्वास बढ़ा है और गांवों में भी महिलाओं को लेकर सोच में सकारात्मक बदलाव आया है.

आत्मनिर्भर भारत की राह पर ग्रामीण महिलाएं
RSETI की यह पहल सरकार के आत्मनिर्भर भारत अभियान को मजबूत कर रही है. इससे न सिर्फ महिलाओं को आर्थिक मजबूती मिल रही है बल्कि वे देश की अर्थव्यवस्था में भी सक्रिय भागीदारी निभा रही हैं. यह बदलाव आने वाले समय में ग्रामीण भारत की तस्वीर ही बदल देगा.

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