बंजर जमीन को बनाया उपजाऊ, छत्तीसगढ़ के युवा किसान की आधुनिक जैविक खेती बनी मिसाल, जानें सफलता का राज

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Agriculture News: राजेंद्र सिंह ने खेतों में सीसीटीवी और इंफ्रारेड कैमरे लगाए हैं ताकि वह मोबाइल ऐप से हर पल खेतों की निगरानी कर सकें. दरअसल रात के समय भी फसलों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाती है.

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राजेंद्र सिंह ने बंजर जमीन को उपजाऊ बनाया.

रायपुर. जहां एक ओर लोग खेती को घाटे का सौदा मानकर दूर भाग रहे हैं, वहीं मनेंद्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर जिले के खड़गवां के दुबछोला गांव के युवा किसान राजेंद्र सिंह ने जैविक खेती में नवाचार कर मिसाल कायम की है. उन्होंने फोन के माध्यम से लोकल 18 से बातचीत में बताया कि कैसे उन्होंने बंजर समझी जाने वाली पीली और लाल मिट्टी में भी हरियाली फैला दी. कहते हैं न जहां चाह होती है, वहां राह होती है. ऐसा ही कुछ कर दिखाया है राजेंद्र सिंह ने.

राजेंद्र सिंह भिलाई से बायोटेक्नोलॉजी में स्नातक और पुणे से स्नातकोत्तर की पढ़ाई कर चुके हैं. वह वर्तमान में पीएचडी कर रहे हैं लेकिन पढ़ाई के साथ-साथ उन्होंने खेती को भी अपने जीवन का उद्देश्य बनाया. कोरोना काल में जब वे पुणे से लौटे, तो गांव की बंजर जमीन देखकर उन्होंने उसे उपजाऊ बनाने की ठानी. 15 एकड़ की खेती योग्य भूमि में से 8 एकड़ में उन्होंने जैविक और परंपरागत तकनीकों के साथ आधुनिक विधियों का समावेश किया. खीरा, लौकी, करेला, भिंडी, बरबट्टी जैसी फसलें लगाईं. उनके खेतों की सबसे बड़ी समस्या थी कम भूजल स्तर और सिंचाई का अभाव लेकिन उन्होंने इसका हल ड्रिप इरिगेशन सिस्टम और मल्चिंग पेपर से निकाला.

200 लीटर पानी में लहलहा उठती हैं फसलें
राजेंद्र सिंह ने लोकल 18 से कहा कि एक एकड़ खेत में सिंचाई के लिए सामान्यतः 1000 लीटर पानी चाहिए, लेकिन ड्रिप सिंचाई तकनीक से महज 200 लीटर पानी में फसलें लहलहा उठती हैं. साथ ही मल्चिंग पेपर से नमी बनी रहती है और मिट्टी का क्षरण भी नहीं होता. फसलों को कीटों से बचाने के लिए ‘एकीकृत कीट प्रबंधन’ प्रणाली अपनाते हैं. तना छेदक और फल छेदक कीटों पर नीम तेल का छिड़काव, खेतों में गेंदा के फूल, हल्दी, और अदरक जैसे प्राकृतिक कीटरोधी पौधों का इस्तेमाल करते हैं. ये पौधे कीट भगाने के साथ-साथ अतिरिक्त आय का भी साधन बनते हैं.

खेतों में लगाए CCTV और इंफ्रारेड कैमरे
वह फसल चक्र यानी क्रॉप रोटेशन भी अपनाते हैं, जिससे मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है और कीटों का प्रभाव कम होता है. रासायनिक खाद के स्थान पर गाय के गोबर, गौमूत्र और बकरी की लीद से तैयार खाद का उपयोग करते हैं, जिससे मिट्टी उपजाऊ बनी रहती है. राजेंद्र ने खेतों में CCTV और इंफ्रारेड कैमरे लगाए हैं ताकि वह मोबाइल ऐप के जरिए हर पल निगरानी कर सकें. रात के समय भी फसलों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाती है. राजेंद्र का कहना है कि मनेंद्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर जिले में पीली और लाल मिट्टी पाई जाती है, जो सामान्यतः कम उपजाऊ मानी जाती है लेकिन सही तकनीक और प्राकृतिक साधनों से इसी जमीन को सोना बनाया जा सकता है. राजेंद्र सिंह की यह खेती आज न केवल स्थानीय युवाओं को प्रेरित कर रही है बल्कि यह साबित कर रही है कि तकनीक, परंपरा और प्रकृति के तालमेल से खेती को लाभ का व्यवसाय बनाया जा सकता है. वह चाहते हैं कि युवा पीढ़ी खेती से जुड़े और आधुनिक जैविक खेती को अपनाकर रोजगार और पर्यावरण दोनों में योगदान दें.

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बंजर जमीन को बनाया उपजाऊ, युवा किसान की आधुनिक जैविक खेती बनी मिसाल

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