नई दिल्ली: फिल्मों में आपने कई ऐसे सुपर हीरो और बैटमैन देखे होंगे जो गायब बच्चों या लड़कियों को गुंडों से बचाते हैं, लेकिन क्या आपने असल जिंदगी में सुपर हीरो देखे हैं? जी हां, दो चेहरे, जिनके पास न कोई सुपर पावर, न ही कोई जादू की छड़ी, लेकिन उनका हौसला किसी हीरो से कम नहीं था. नाम हैं, ASI निर्देश पंवार और ASI राजदीप. पिछले 11 महीनों में इन दोनों ने वो कर दिखाया है, जो कई बार पूरी टीमों से भी नहीं हो पाता. इन्होंने 223 बच्चों को उनके माता-पिता से मिलवाया है. ऐसे बच्चे जो सालों से गायब थे, जिनके मिलने की उम्मीदें खत्म हो चुकी थीं और तस्वीरें धुंधली हो चुकी थीं.
सुनने में ये किसी फिल्मी कहानी जैसा लगता है, लेकिन इसकी हकीकत बहुत गहरी है. निर्देश पंवार और राजदीप दिल्ली के 70 से अधिक थानों में दर्ज केसों पर काम कर चुके हैं. ये गुमशुदा बच्चों को ढूंढ निकालने के लिए कई बार जम्मू, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, बिहार, पंजाब, राजस्थान और हरियाणा तक चले जाते हैं. कई बार इनके पास बस एक धुंधली तस्वीर, एक नाम और एक फाइल होती थी. लेकिन वे हार नहीं मानते. वे सुरागों की तलाश करते, दरवाजे खटखटाते, पुराने कागज पलटते और हर संभव रास्ता अपनाते. राजदीप ने अब तक 112 बच्चों को और पंवार ने 111 बच्चों को ढूंढ निकाला है. उनकी इस उपलब्धि के चलते उन्हें आउट-ऑफ-टर्न प्रमोशन भी मिला है. पहले वे हेड कांस्टेबल थे, अब ASI हैं.
हर दिन निकलती है एक फाइल
इनका हर दिन सुबह 6 बजे शुरू होता है. देश के नेशनल डाटाबेस जैसे CCTNS (Crime and Criminal Tracking Network and Systems) और ZIPNET (Zonal Integrated Police Network) पर नजर रखते हुए. पुराने और नए मामलों की लिस्ट में से किसी एक केस को चुनते और फिर उस पर काम शुरू कर देते. लेकिन हर केस इतना आसान नहीं होता. ASI पंवार बताते हैं कि ‘कई बार FIR में जो नंबर होते हैं वो बंद मिलते हैं, कई बार परिवार दूसरी जगह शिफ्ट हो गया होता है. कभी-कभी तो बच्चे की कोई नई फोटो भी नहीं मिलती.’ लेकिन वे हार नहीं मानते.
छोटी-छोटी चीजों में मिलता है सुराग
जब परिवार से संपर्क होता है, तब दोनों अधिकारी परिवार से मिलने जाते हैं. वे बच्चे की आदतें, व्यवहार, और गायब होने से पहले की जानकारी लेते हैं. इसके बाद खोज शुरू होती है CDR (कॉल डिटेल रिकॉर्ड), सोशल मीडिया और CCTV फुटेज की जैसी कई चीजें चेक की जाती हैं. कई बार तो सोशल मीडिया की एक तस्वीर में पीछे दिख रही दुकान या कोई लोकेशन इन्वेस्टिगेशन में पहला सुराग देती है. लेकिन जब डिजिटली कोई रास्ता नहीं मिलता, तो दोनों मेहनत की हर सीमा पार करते हैं. 200 से ज्यादा कैमरों की फुटेज देखना, एक-एक गली में जाकर पूछताछ करना, और हर शेल्टर होम या NGO से संपर्क करना. राजदीप बताते हैं, ‘कुछ बच्चे खुद घर छोड़ देते हैं, कुछ को बहला-फुसलाकर ले जाया जाता है, तो कुछ ट्रैफिकिंग के शिकार होते हैं. हर केस एक नया चैलेंज होता है.’
कुछ केस…
एक केस में, एक 14 साल की लड़की को ढूंढने के लिए उन्हें जम्मू तक जाना पड़ा. CCTV में दिखा कि वह लड़की नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से एक ट्रेन में चढ़ी थी. उसी रात 9:30 बजे दोनों ट्रेन में सवार हो गए. सुबह 7 बजे जम्मू पहुंचे और स्टेशन की हर कोने की तलाश की. किस्मत साथ थी वो लड़की अकेली एक बेंच पर बैठी मिली. उसी दिन उसे दिल्ली लाकर माता-पिता से मिलवाया गया. एक और केस 2017 का था. MS पार्क इलाके से एक 15 साल की लड़की गायब हुई थी. सालों तक कोई सुराग नहीं मिला. परिवार ने उम्मीद छोड़ दी थी. लेकिन इस साल कुछ इलेक्ट्रॉनिक सुरागों के आधार पर उसे उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में ढूंढ निकाला गया. वह अब 22 साल की हो चुकी है.
जब माता-पिता से मिलते हैं बच्चे
राजदीप कहते हैं, ‘वो पल जब कोई माता-पिता अपने बच्चे को फिर से पाते हैं, वही हमारी सारी मेहनत का फल होता है.’ निर्देश पंवार कहते हैं, ‘हमारे अपने बच्चे हैं. जब कोई बच्चा लापता होता है, तो हम उसे भी अपने बच्चों की तरह ही मानते हैं. इसलिए हम रुकते नहीं, थकते नहीं.’