डोनाल्ड ट्रंप खुद को सबसे बेहतरीन और दुनिया बदलने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति बताते रहे हैं. कभी टैरिफ की धमकी तो कभी प्रतिबंधों की चेतावनी देकर वह दुनियाभर के तमाम देशों पर अपना दबदबा दिखाने की कोशिश में हैं. हालांकि इन सब जतन में उन्हें वैसी सफलता नहीं मिल पा रही है, जिसकी उन्हें उम्मीद थी.
ट्रंप खुद को पहले से कहीं ज्यादा ताकतवर और निर्णायक राष्ट्रपति मानते हैं, लेकिन वैश्विक मंच पर एक के बाद एक असफलताओं का सामना कर रहे हैं. चीन हो, रूस हो, यूरोप या इजरायल इन सभी देशों के नेताओं ने उनके दबाव और धमकियों के आगे झुकने से इनकार कर दिया है. हालत यह है कि उनकी धमकियों को अब TACO ट्रेड की संज्ञा दी जाने लगी है, जिससे अमेरिकी की खूब किरकिरी भी हो रही है.
रूस-यूक्रेन युद्ध को खत्म करने की अमेरिकी कोशिशों को रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने लगातार नजरअंदाज किया है. रूसी मीडिया अब ट्रंप को ऐसा नेता बता रही है जो सिर्फ धमकाता है, लेकिन कभी कार्रवाई नहीं करता. ट्रंप का ‘कड़े तेवर’ का इमेज यहां बुरी तरह फेल हो रहा है.
‘TACO ट्रेड’ का तंज
ट्रंप ने अपने प्रचार में चीन के खिलाफ आक्रामक रुख अपनाया था, लेकिन व्यापार युद्ध में वे पीछे हटते नजर आए. चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के आगे ट्रंप की रणनीति बेअसर रही. अमेरिकी अधिकारी मानते हैं कि चीन ने अब तक तनाव कम करने के लिए किए गए वादों को नहीं निभाया.
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यूरोपीय यूनियन के खिलाफ टैरिफ की धमकी देने वाले ट्रंप आखिरकार पीछे हट गए. फाइनैशियल टाइम्स के एक लेख में उनपर तंज कसते हुए ‘TACO ट्रेड’ यानी Trump Always Chickens Out (ट्रंप हमेशा डरकर पीछे हटते हैं) कहा गया, जिसने अमेरिकी राष्ट्रपति को खासा नाराज कर दिया.
‘पर्सनल रिलेशन’ का फॉर्मूला फेल
डोनाल्ड ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल में इजरायली प्रधानमंत्री नेतन्याहू को खुला समर्थन दिया था. लेकिन अब जब वे गाजा में लड़ाई रोकने की कोशिश कर रहे हैं, नेतन्याहू इसमें सहयोग नहीं कर रहे. ट्रंप के ईरान परमाणु समझौते की कोशिशें भी इजरायल के सैन्य मंसूबों में बाधा बन रही हैं.
ट्रंप चुनाव प्रचार में बार-बार कहते रहे कि उनकी पुतिन और शी जिनपिंग से ‘बेहद अच्छी दोस्ती’ है और इससे तमाम वैश्विक समस्याएं हल हो जाएंगी. लेकिन हकीकत यह है कि इन नेताओं ने ट्रंप की अपीलों को गंभीरता से लेना बंद कर दिया है.
अमेरिका की वैश्विक ताकत को लगा झटका
अमेरिका की ‘सॉफ्ट पावर’ दशकों से मजबूत थी. वह दुनिया को अपनी बात से सहमत करने की ताकत रखता था. लेकिन ट्रंप के आक्रामक रवैये के चलते वह लगातार कमजोर हो रही है. ट्रंप अब खुद को एक ऐसा शख्स मानते हैं जिसे हर कोई मानेगा, लेकिन हकीकत इससे उलट है.
यह ट्रंप की अकेली कहानी नहीं है. जॉर्ज बुश ने ‘ग्लोबल पुलिस’ बनने से मना किया, लेकिन 9/11 के बाद अफगानिस्तान और इराक में युद्ध छेड़ दिया. ओबामा ने मुसलमानों को ‘नए दौर’ का वादा किया, लेकिन अरब वसंत के बाद कुछ नहीं बदला. बाइडेन ने कहा ‘अमेरिका लौट आया है’, लेकिन चार साल बाद अमेरिका फिर अंदरूनी संकट में है — और ट्रंप वापस आ गए हैं.
बाकी दुनिया भी झुकने को तैयार नहीं
टैरिफ, टेरिटोरियल धमकियों (जैसे कनाडा, ग्रीनलैंड) और मानवीय सहायता कार्यक्रमों में कटौती जैसे फैसलों के बाद भी चीन, रूस, इज़राइल, यूरोप और कनाडा ने ट्रंप को वह महत्व नहीं दिया जो वे चाहते थे. इन देशों का मानना है कि ट्रंप उतने शक्तिशाली नहीं हैं जितना वे समझते हैं — और उन्हें चुनौती देने की अब कोई कीमत नहीं चुकानी पड़ती.
डोनाल्ड ट्रंप वैश्विक स्तर पर ‘मजबूत नेता’ की छवि गढ़ने की कोशिश में हैं, लेकिन दूसरी तरफ दुनिया के नेता अपनी खुद की राष्ट्रीय प्राथमिकताओं को प्राथमिकता दे रहे हैं. ट्रंप के लिए यह समझना जरूरी है कि अब ‘व्हाइट हाउस की धमक’ उतनी प्रभावशाली नहीं रह गई है, और वैश्विक राजनीति में व्यक्तिगत संबंधों से ज्यादा मायने रखते हैं दीर्घकालिक रणनीतिक हित…