PHOTOS: क्या आप जानते हैं छत्तीसगढ़ के 5 दुर्लभ नृत्य? जहां नाचते-नाचते ही चुन लेते हैं लाइफ पार्टनर

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CG Top 5 Traditional Dance: छत्तीसगढ़ न सिर्फ प्राकृतिक सौंदर्य और जनजातीय जीवन बल्कि नृत्य मान्यताओं के लिए प्रसिद्ध है. ऐसे….

सैला नृत्य

सैला नृत्य सरगुजा अंचल सम्मोहक लोकनृत्य है. इस नृत्य में नर्तक साफा, धोती और कुरता पहनते हैं. साफे के उपर मोरपंख बंधे रहते हैं. नर्तक हाथों में पकड़े डंडों को आपस में टकराते हुए मांदर और झांझ के ताल पर गोल घेरे में नाचते हैं. यह पुरुष वर्ग का नृत्य हैं.

ककसार नृत्य

ककसार (मुरिया) नृत्य छत्तीसगढ़ के बस्तर स्थित अबुझमाड़ का प्रसिद्ध नृत्य है. अच्छी फसल होने के लिए खुशी में मुरिया युवक-युवतियां इस नृत्य को करते हैं, साथ ही उस दौरान अपने जीवनसाथी का चुनाव भी करते हैं.

सुआ नृत्य

सुआ नृत्य छत्तीसगढ़ की महिला तथा बालिकाओं का पांरपकि नृत्य है. नृत्य के समय घेरे के अंदर एक टोकरी में धान, मिट्टी के दो तोते और प्रज्वलित दीप रखकर उसके चारों ओर गोल घेरा बनाकर महिलायें झुककर ताली बजाती हुई लयबद् गीत गाती हुई नृत्य करती हैं. सुआ नृत्य कार्तिक महीने में आयोजित होता है.

गेड़ी नृत्य

गेड़ी (मुरिया ) नृत्य लकड़ी की गेड़ी पर चढ़कर करते हैं. इस नृत्य को मुरिया लोग ‘डिटोंग पाटा’ कहते है. इस नृत्य में स्त्रियां भाग नही लेती हैं घोटूल का यह प्रमुख नृत्य है. छत्तीसगढ़ के मैदानी भागों में भी गेड़ी नृत्य प्रचलित है.

गौरा गौरी

छत्तीसगढ़ के ग्रामीण अंचलों में स्थापित गौरा चौरा में पारंपरिक उत्सव कार्तिक मास के अमावस्या के दिन विधि-विधान के साथ मनाते है. यह गौरा गौरी उत्सव शिव-पार्वती के विवाह से संबंधित है. यह एक प्रकार का धार्मिक उत्सव है. दिवाली पूजा के दुसरे दिन धुमधाम से जुलूस के रूप में नदी-तालाब में विर्जसन करते है.

सरहुल नृत्य

सरहुल नृत्य छत्तीसगढ़ के उरांव जनजाति का पांरपरिक लोक नृत्य है. सरहुल नर्तक सिर पर साफा बांधते हैं तथा स्त्रियां अपने जूड़े में बगुला के पंखों की कलगी खोंसे रहती हैं. देवी-देवता और पितरों की प्रसन्नता तथा ग्राम के सुख समृद्धि के लिए सरहुल नृत्य किया जाता है.

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जानते हैं छत्तीसगढ़ के 5 दुर्लभ नृत्य? जहां नृत्य में ही चुनते हैं जीवनसाथी

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