ग्रामीण भारत की हकीकत को उजागर करती वेब सीरीज ‘ग्राम चिकित्सालय’ इन दिनों चर्चा में है. यह सीरीज न सिर्फ मनोरंजन देती है, बल्कि एक गंभीर सामाजिक समस्या झोलाछाप डॉक्टरों की हकीकत को सामने लाती है. खासकर छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में, जहां आज भी सैकड़ों गांव ऐसे हैं जहां असली डॉक्टरों से ज़्यादा भरोसा झोलाछापों पर किया जाता है, यह कहानी आपको चौंका देगी.
सरगुजा जिले के लखनपुर विकासखंड के ग्राम पुटा में एक ऐसा ही मामला सामने आया है. उत्तर प्रदेश के बनारस से आया एक युवक बिना किसी मेडिकल डिग्री या रजिस्ट्रेशन के, किराए के मकान में क्लिनिक चला रहा है. वह उल्टी, दस्त, बुखार, दाद-खाज जैसी बीमारियों का इलाज तो करता ही है, साथ ही घर-घर जाकर भी मरीज देखता है. सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि वह बिना अनुमति के H1 ड्रग्स जैसी संवेदनशील दवाएं भी धड़ल्ले से बेच रहा है.
मेडिकल स्टोर की आड़ में मौत का कारोबार
सरगुजा और आसपास के कई गांवों में ऐसे झोलाछाप मेडिकल दुकान की आड़ में क्लिनिक चला रहे हैं. इनका कोई मेडिकल प्रशिक्षण नहीं होता, न ही सरकार की कोई अनुमति. लेकिन ग्रामीणों की मजबूरी और चिकित्सा सुविधाओं की कमी के कारण ये लोग वहां “डॉक्टर” कहलाते हैं. स्वास्थ्य विभाग की ओर से अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई है, जिससे इन फर्जी डॉक्टरों के हौसले और बढ़ गए हैं.
यह वेब सीरीज एक युवा योग्य डॉक्टर की कहानी है जो गांव में आकर लोगों का भरोसा जीतने की कोशिश करता है. लेकिन उसे झोलाछाप डॉक्टरों की जड़ें इतनी गहरी मिलती हैं कि खुद को साबित करने के लिए उसे सामाजिक, मानसिक और व्यावसायिक संघर्षों से गुजरना पड़ता है.
जिम्मेदार कौन?
मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. पी एस मार्को का कहना है कि उन्हें शिकायत मिली है और कार्रवाई की जाएगी. लेकिन सवाल यह है कि कार्रवाई कब होगी और क्या तब तक और जानें इन झोलाछाप डॉक्टरों की भेंट चढ़ेंगी?