Delhi Serial killer: 19 अक्टूबर 2006 की रात, दिल्ली के हैदरपुर बादली गांव की तंग गलियां, गलियों में सन्नाटा पसरा, सर्दी की आमद थी, और हवा में नमी के साथ कुछ अजीब सा डर तैर रहा था. एक टूटा-फूटा कमरा, जो सालों से इंसानी कदमों का गवाह रहा था. कमरे में दो लोग बैठे थे, एक 30-32 साल का, सांवले रंग का, और दूसरा उससे कुछ छोटा, करीब 25 साल का. बातचीत से दोनों के बीच पुराना रिश्ता झलक रहा था. 32 साल के आदमी ने पूछा ‘बहुत दिनों बाद आए हो, अनिल… क्या खाओगे?’ अनिल ने कहा, ‘भइया, मटन बना लो. बहुत थक गया हूं.’
रात 12 बजे तक मटन पक चुका था. शराब की बोतलें खाली हो चुकी थीं. जैसे ही अनिल ने खाना खत्म किया, उसका साथी बोला, ‘तुम बैठो… तुम्हें सजा भी तो देनी है.’ अनिल हंसा, लेकिन अगली कुछ सांसों में उसकी हंसी चीख में बदल गई. नान-चक से अनिल की गर्दन को कसते हुए वो शख्स तड़पते हुए अनिल की आखिरी सांस तक उसे देखता रहा. फिर… खून, चाकू, गड़ासा हर औजार से उस आदमी ने अनिल के शरीर के हिस्से किये. पहले सिर को चाकू से काटना शुरू किया, लेकिन इससे काम नहीं बन पाया तो बड़ा धारदार गड़ासा ले आया और 4-5 वार में सिर को धड़ से अलग कर दिया. सिर काटने के बाद लाश को अखबार, प्लास्टिक की बोरी और पुराने कपड़ों में लपेटा लेकिन खून फिर भी रिसता रहा तो वो प्लास्टिक की बोरी ले आया और बोरी में सिर डाल दिया. इस आदमी का नाम था चंद्रकांत झा, जिसने कई सालों तक दिल्ली पुलिस की रातों की नींद उड़ा दी थी. हत्या करना, फिर लाशों के सिर काट देना, उसके जुर्म का ऐसा घिनौना चेहरा था, जिसके बारे में लोग सुनते हैं तो आज भी सिहर जाते हैं.
सिर को बोरी में डालने के बाद चंद्रकांत कुछ देर तक बैठकर बैठकर लाश को देखता रहा. जब खून रिसना बंद हो गया, तो उसने लाश के पैरों को छाती की तरफ मोड़कर बांध दिया. बैठकर देखने लगा कि खून बाहर तो नहीं निकल रहा. खून रिसना बंद हो चुका था. पास ही प्लास्टिक की एक दूसरी बोरी रखी थी. कातिल ने उसी में लाश को ठूंस दिया. बोरी को घसीटते हुए दरवाजे की तरफ ले गया और एक बांस के टोकरे में रख दिया. अब एक और बोरी टोकरे पर लपेट दी.
सुबह आया फोन
रात के तीन बजे, हत्यारा सिर पर लाश वाला टोकरा उठाकर निकला. बस, ऑटो और फिर पैदल… आखिरकार वो तिहाड़ जेल के गेट नंबर 3 के पास पहुंचा. लाश से भरा टोकरा एक ATM के सामने सड़क पर रख दिया. सुबह हरि नगर थाने में गालियों से भरा एक फोन आया. पुलिस ने मजाक समझा, लेकिन जब दोबारा फोन आया, तो किसी ने कहा ‘तिहाड़ जेल गेट नंबर 3 के पास टोकरा है… उसमें लाश है.’ पुलिस मौके पर पहुंची. टोकरा खोला और सबके होश उड़ गए धड़ अलग, सिर गायब. कपड़े, अखबार और प्लास्टिक की कई परतें और फिर, एक चिट्ठी.
चिट्ठी
खून से रंगी चिट्ठी में टूटी-फूटी हिंदी में लिखा था- ‘दिल्ली पुलिस, कान खोलकर सुन लो. अब तक मैं नाजायज केस झेलता रहा, लेकिन मैं अब हकीकत में मर्डर किया हूं. अगर इस मर्डर में तुम मुझे पकड़ सको तो पकड़ कर दिखाओ, तब मैं समझूंगा कि तुम सारे के सारे दिल्ली पुलिस ऊपर से नीचे तक के स्टाफ अपने असल मां-बाप की पैदाइश हो. नहीं तो, नाजायज केस लगाना बंद करो… वर्ना ये सिलसिला हमेशा-हमेशा के लिए जारी रहेगा. तुम लोग मुझे कभी भी नहीं पकड़ पाओगे. मैं कोई गैंगवार नहीं हूं कि मुझे केस खुलने का डर लगा रहेगा क्योंकि इसके सबूत हैं कि 2003 के नवंबर महीने में जो एक नंबर गेट पर मैंने मर्डर करके डाला उसको भी तुम लोग नहीं खोल सके. न ही इस केस को खोल पाओगे, ये हमारा वादा है. वरना नाजायज केस लगाना बंद करो या फिर केस खोल सको तो केस खोल कर दिखा दो.
तुम्हारे इंतजार में, तुम लोगों का बाप और तुम्हारा जीजा C.C’
चंद्रकांत के लिखे खत (Netflix screenshot)
होशियार सिंह का फोन फिर बजा
इस चिट्ठी की शुरुआत में दिल्ली पुलिस के लिए भद्दी-भद्दी गालियां भी थीं. थोड़ी देर बाद SHO होशियार सिंह का फोन फिर बजा. इंस्पेक्टर सुंदर सिंह ने होशियार सिंह के हाथ से फोन लिया और गुस्से में कहा, ‘ओ बदमाश, बदतमीज, सुन ले. मेरा चैलेंज है, पकड़कर दिखाऊंगा.’ इसके बाद इंस्पेक्टर सुंदर सिंह को इस केस का इन्वेस्टिगेशन ऑफिसर यानी IO बनाया गया. लाश, चिट्ठी, टोकरा, अखबार और छोटे बच्चों के कपड़े फोरेंसिक जांच के लिए भेज दिए गए. अब सुंदर सिंह ने हरि नगर थाने में आए फोन कॉल्स की डिटेल्स निकालनी शुरू की. जिन नंबरों से कॉल आया था, उनमें से एक नांगल सराय और दूसरा तिलक नगर का था.
चलते रहे कत्ल के सिलसिले
खून से सनी कत्ल की यह सिलसिलेवार दास्तान दिल्ली के आदर्श नगर इलाके से शुरू हुई थी. जहां 1998 में पहली सिर कटी लाश मिली थी. दूसरी सिर कटी लाश 27 जून 2003 को अलीपुर में, तीसरी सिर कटी लाश 20 नवंबर 2003 को तिहाड़ जेल के गेट नंबर 1 के सामने, चौथी सिर कटी लाश 2 नवंबर 2005 को मंगोलपुरी में, पांचवीं सिर कटी लाश 20 अक्टूबर 2006 को तिहाड़ जेल के गेट नंबर-3 के सामने, छठी सिर कटी लाश 25 अप्रैल 2007 को तिहाड़ जेल के गेट नंबर-3 के सामने और सातवीं सिर कटी लाश 18 मई 2007 को फिर से तिहाड़ के गेट नंबर-3 के सामने बरामद हुई थी. पुलिस के लिए यह एक बड़ी चुनौती थी. लेकिन इस बार हत्यारे ने गलती कर दी, यही था उसका आखिरी कत्ल.
बगल में छोरा शहर में ढिंढोरा
पुलिस के सामने एक के बाद एक चुनौती रखने वाले शातिर खूनी का नाम था चंद्रकांत झा. कमाल ये था कि पहले ही कत्ल के बाद पुलिस ने चंद्रकांत झा को गिरफ्तार भी कर लिया था. लेकिन सबूतों के अभाव में वो बरी हो गया. और उसके बाद कत्ल का सिलसिला एक बार फिर शुरू हो गया. तिहाड़ जेल के बाहर लाशों के मिलने का सिलसिला थम नहीं रहा था. दिल्ली पुलिस के सामने कातिल का चेहरा तो था लेकिन उसके पास सबूत नहीं थे जो ये साबित कर पाते कि चंद्रकांत ही इन सिर कटी लाशों का गुनहगार है. जी हां, पुलिस ने पहले कत्ल के बाद ही चंद्रकांत को गिरफ्तार लिया था. पुलिस को यकीन भी था कि हत्यारा यही है. इस यकीन को सबूत का जामा पहनाना बाकी था. लिहाजा पुलिस ने चंद्रकांत को गुनहगार साबित करने के लिए उसके खिलाफ सबूत इकट्ठा करने शुरू किए. शेखर मर्डर केस में पुलिस ने कोर्ट में चंद्रकांत को कातिल ठहराने के लिये कई सुबूत और गवाह पेश किए. लेकिन उसकी तमाम दलीलें नाकाम साबित हुईं. कोर्ट ने सबूतों के अभाव में झा को बरी कर दिया. उमेश मर्डर केस में भी चंद्रकांत के खिलाफ पुलिस के पास कोई सबूत नहीं था. लिहाजा इस मामले में भी चंद्रकांत को कोर्ट ने बरी कर दिया था. ऐसे ही मंगोलपुरी मर्डर केस में सुबूत के अभाव में मजबूरन अदालत ने चंद्रकांत बरी कर दिया था.
खत बना सजा का कारण
चंद्रकांत के खिलाफ सबसे बड़ा सबूत आखिर में वो खत ही बना, जो उसने दिल्ली पुलिस को लिखा था. खत की लिखावट और चंद्रकांत की लिखावट एक थी. फॉरेंसिक रिपोर्ट ने भी इसकी तसदीक कर दी थी. इसी लिखावट के आधार पर आखिरकार अदालत ने चंद्रकांत को दोषी माना. लिखावट के अलावा इसी खत से दूसरा सबसे अहम सुराग भी पुलिस को मिला. दरअसल खत में चंद्रकांत ने ये भी लिखा था कि वो 2003 में जेल से निकल चुका है. रिकार्ड से पता चला कि वो सचमुच 2003 में तिहाड़ से जमानत पर रिहा हुआ था. तिहाड़ के सामने अमित नामक युवक की लाश फेंकने के बाद खुद चंद्रकांत ने हरिनगर थाने में पुलिस को फोन किया था. और चुनौती दी थी कि उसे पकड़ सको तो पकड़ लो. जिस पीसीओ से चंद्रकांत ने पुलिस को फोन किया था, उस पीसीओ के मालिक ने अदालत में चंद्रकांत को पहचान लिया था. इसके अलावा पुलिस को चंद्रकांत के हैदरपुर स्थित मकान नंबर 229 में खून से सना एक चाकू भी बरामद हुआ था. खून का मिलान उसके हाथों मारे गए दिलीप नामक एक व्यक्ति की लाश से हुआ था. लेकिन सवाल ये उठता है कि आखिर चंद्रकांत ने ये कत्ल क्यों किये थे?
चंद्रकांत झा
क्यों करता था कत्ल?
पुलिस ने अपनी चार्जशीट में इस खौफनाक सीरियल किलिंग की जो वजह बताई वह चौंकाने वाली है. वजह यह थी कि चंद्रकांत झा काफी गुस्सैल किस्म का शख्स था. उसे अचानक किसी दोस्त या साथी की जरा सी बात भी नागवार गुजरती तो वो उसका कत्ल कर बैठता था और लाश की शिनाख्त को मिटाने के लिए उसका सिर धड़ से जुदा कर देता था. मसलन किसी के चालचलन पर शक होने पर, या एक दोस्त के मछली खाकर बर्तन बाहर ना रखने पर, बिना उसके बताए उसका रिक्शा लेने और उसमे पंक्चर करके वापस देने पर या फिर उसका मोबाइल चोरी करने पर उसने लोगों का कत्ल कर दिया था.
एक साथ मिली दो सजा
दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तारी के बाद 24 अगस्त 2007 को निचली अदालत में उसके खिलाफ चार्जशीट दाखिल की थी. पहली चार्जशीट में उस पर छह लोगों के कत्ल का इल्जाम था. 26 अगस्त 2007 को पुलिस ने उसके खिलाफ दूसरी चार्जशीट दाखिल की. जिसमें उस पर सातवें कत्ल का इल्जाम लगा. लेकिन पांच दिसंबर 2007 को अदालत ने सबूतों के अभाव में चंद्रकांत झा को कत्ल के एक केस में बरी कर दिया. वो जमानत पर बाहर आ गया था. लेकिन फिर 21 मार्च 2008 को अदालत ने पहली नजर में उसे सिलसिलेवार कत्ल का दोषी माना और उसके खिलाफ मुकदमा चलाने की इजाजत दे दी. 2013 में उसे एक साथ फांसी और उम्रकैद की सजा सुनाई गई. लेकिन फिर तीन साल बाद 27 जनवरी 2015 को दिल्ली हाई कोर्ट ने चंद्रकांत झा की मौत की सजा को उम्रकैद में बदल दिया था.
बता दें, चंद्रकांत झा ने 1997 से 2007, लगभग 10 साल तक पूरे दिल्ली में उसका दहशत फैला कर रखा था. इस दौरान उसने लगभग 18 लोगों की हत्या की थी. सीरियल किलर, ‘द बुचर ऑफ दिल्ली’ चंद्रकांत झा को दिल्ली क्राइम ब्रांच पुलिस ने गिरफ्तार किया. इसी के जिंदगी पर ‘द बुचर ऑफ दिल्ली’ नाम से डॉक्यूमेंट्री (नेटफ्लिक्स पर) भी पिछले कुछ समय पहले की रीलीज की गई थी.