फिर से उगा सकेंगे छत्तीसगढ़ के वो धान..जिनके नाम में लगता था भोग, महक से टूट पड़ेंगे खरीदार, किसान होंगे मालामाल

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Chhattisgarh Paddy Crop Old Variety: छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा कहा जाता है. यहां पुराने जमाने में कई ऐसे धान उगाए जाते थे, जिनकी महक लोगों को दीवाना बना देती थी. अब उनको फिर उगाया जाएगा. जानें योजना…

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हाइलाइट्स

  • छत्तीसगढ़ में पारंपरिक सुगंधित धान की किस्में फिर से उगाई जाएंगी
  • किसानों को ‘देवभोग’, ‘तरुण भोग’, ‘विष्णु भोग’ जैसी किस्में मिलेंगी
  • ये किस्में ऑर्गेनिक खेती के लिए उपयुक्त हैं

Chhattisgarh Paddy Old Variety: छत्तीसगढ़ की पारंपरिक और सुगंधित धान की किस्मों को संरक्षित करने और फिर से लोकप्रिय बनाने के लिए इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर के वैज्ञानिकों ने एक सराहनीय पहल की है. विश्वविद्यालय के प्लांट ब्रीडिंग डिपार्टमेंट के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. सुनील कुमार नायर ने बताया कि छत्तीसगढ़ की विलुप्त हो रही सुगंधित धान की किस्मों को बचाया जा रहा है.

डॉ. नायर ने बताया कि पुरानी किस्मों को फिर से किसानों के खेतों तक पहुंचाने का काम तेजी से किया जा रहा है. छत्तीसगढ़ के ग्रामीण इलाकों में पारंपरिक रूप से ‘देवभोग’, ‘तरुण भोग’, ‘विष्णु भोग’ जैसी सुगंधित धान की किस्में बहुत लोकप्रिय रही हैं. ये किस्में छोटी, बेहद सुगंधित और मुंह में रखते ही घुल जाने वाली होती थीं. लेकिन, धीरे-धीरे उच्च उत्पादन वाली आधुनिक किस्मों के कारण ये पारंपरिक किस्में खेतों से गायब होती जा रही थीं. अब इन्हीं को दोबारा से खेतों में लाने की कोशिश की जा रही है.

पुरानी किस्म बड़ा बदलाव
इस स्थिति को देखते हुए कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने करीब 23,250 पारंपरिक जनजातीय धान किस्मों का मूल्यांकन कर उनमें से सर्वोत्तम उत्पादन और गुणवत्ता वाली किस्मों का चयन किया. इस प्रयास के तहत ‘बासाभोग सलेक्शन-1’, ‘तरुण भोग सलेक्शन-1’ और ‘विष्णु भोग सलेक्शन-1’ जैसी नई चयनित किस्मों को फिर से सीड चेन में लाया गया है. इन किस्मों को विशेष रूप से घरेलू उपभोग और धार्मिक प्रयोजनों के लिए किसान उत्साह से अपना रहे हैं.

सिर्फ आर्गेनिक खेती 
इन धानों की एक और खासियत है कि ये ऑर्गेनिक खेती के लिए उपयुक्त हैं. इनमें रासायनिक उर्वरकों का अधिक प्रयोग करने से पौधों की ऊंचाई अधिक हो जाती है, जिससे दूध अवस्था में दाने अपने ही भार से गिर सकते हैं. इसलिए, गोबर खाद, वर्मी कम्पोस्ट जैसे जैविक उर्वरकों के साथ खेती करने पर इन किस्मों से 35 से 40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक सुगंधित उपज मिल सकती है.

ये किस्म विकसित की
कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने इन्हीं प्रयासों को आगे बढ़ाते हुए ‘छत्तीसगढ़ देवभोग’ नामक एक और किस्म को विकसित किया है, जो ऑर्गेनिक खेती में 45 से 50 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उत्पादन देने में सक्षम है. यह किस्म उत्तर प्रदेश जैसे अन्य राज्यों में भी लोकप्रिय हो रही है.

नाम में ‘भोग’ शब्द क्यों लगा?
डॉ. नायर ने बताया कि ‘भोग’ शब्द का उपयोग इन किस्मों के नामों में इसलिए किया गया है, क्योंकि यह पारंपरिक रूप से भगवान को भोग के रूप में चढ़ाया जाता रहा है. इस प्रकार छत्तीसगढ़ की सुगंधित धान की किस्में अब न केवल अपनी सुगंध और स्वाद के लिए, बल्कि सांस्कृतिक महत्व के लिए भी दोबारा पहचानी जा रही हैं. यह पहल छत्तीसगढ़ के कृषि इतिहास को संजोने और जैविक खेती को बढ़ावा देने की दिशा में एक बड़ा कदम साबित हो रही है.

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फिर उगा सकेंगे छत्तीसगढ़ के वो धान..जिनके नाम में लगता था भोग, किसान होंगे अमीर

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