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CG Unique Temple: जांजगीर के खरौद नगर में अनोखा शिवलिंग है, जिसमें सवालाख छिद्र मौजूद है. खास बात यह है कि खरौद नगर को छत्तीसगढ़ के काशी कहा जाता है.

खरौद लक्ष्मणेश्वर मंदिर
हाइलाइट्स
- खरौद नगर को छत्तीसगढ़ का काशी कहा जाता है.
- लक्ष्मणेश्वर महादेव मंदिर में सवालाख छिद्र शिवलिंग है.
- सावन माह में यहां सवालाख चावल चढ़ाने का विशेष महत्व है.
जांजगीर चांपा : छत्तीसगढ़ की काशी कहें जाने वाले नगर पंचायत खरौद में एक ऐसा शिवलिंग जिसमें सवालाख छिद्र है, यहां शिव मंदिरों में भक्तों की भारी भीड़, हर हर महादेव के नारों से गूंज रहे है, यहां शिव मंदिर में भक्तों की भीड़ सुबह से उमड़ती है. वही सावन माह और महाशिवरात्रि में सुबह से भक्तों की लाइन लगी रहती है.
जांजगीर चांपा जिले के खरौद नगर में है ऐतिहासिक लक्ष्मणेश्वर मंदिर अपने आप में बेहद अद्भुत और आश्चर्यों से भरा है. इस शिवलिंग में सवालाख छिद्र है जो की पातालगामी है क्योकि उसमे कितना भी जल डालो वो सब उसमे समा जाता है जबकि एक छिद्र अक्षय कुण्ड है क्योकि उसमे जल हमेशा भरा ही रहता है वही सवालाख छिद्र होने के कारण लखेश्वर महादेव भी कहा जाता है. लक्षलिंग जमीन से करीब 30 फीट ऊपर है और इसे स्वयंभू भी कहा जाता हैं. यही कारण है कि इसे देखने समझने देश विदेश से भी लोग आते हैं.
लक्ष्मण ने की थी स्थापना यहां चढ़ता है लक्ष चावल…
सावन माह में खरौद के लक्ष्मणेश्वर महादेव में सवालाख छिद्र होने के कारण सवालाख चावल चढ़ाने का विशेष महत्व है. लोग मनोकामना पूरा करने के लिए चावल के सवालाख दाने कपड़े की थैली में भरकर चढ़ाते हैं. इस चावल को लाख चाउर या लक्ष चावल भी कहा जाता है. लक्ष्मणेश्वर महादेव मंदिर के गर्भगृह में शिवलिंग के बारे में मान्यता है की इसकी स्थापना स्वयं लक्ष्मण ने की थी. इसलिए लक्ष्मणेश्वर महादेव कहते हैं. इस शिवलिंग में सवालाख छिद्र है इसलिए इसे लक्षलिंग कहा जाता है. लक्ष्मणेश्वर मंदिर के पुजारी संतोष मिश्रा ने बताया की इस शिवलिंग में सवालाख छिद्र है और गंगा, जमुना और सरस्वती तीनों नदियां इसमें विराजमान है,खरौद नगर के लक्ष्मणेश्वर महादेव मंदिर जो की शिवरीनारायण से 3 किलोमीटर, जांजगीर जिला मुख्यालय से 40 किलोमीटर और छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से 120 किलोमीटर दूर खरौद नगर में स्थित है. कहते है की भगवान राम ने यहां पर खर व दूषण का वध किया था इसलिए इस जगह का नाम खरौद पड़ा. खरौद नगर में प्राचीन कालीन अनेक मंदिरों की उपस्थिति के कारण इसे छत्तीसगढ़ की काशी भी कहा जाता है.