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विक्की कौशल और रश्मिका मंदाना की फिल्म ‘छावा’ ने 800 करोड़ से ज्यादा की कमाई कर इतिहास रचा. फिल्म के डायरेक्टर लक्ष्मण उटेकर की ये अबतक की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म है. हाल ही में डायरेक्टर ने फिल्म इंडस…और पढ़ें

लक्ष्मण उटेकर की कई फिल्मों ने बॉक्स-ऑफिस पर शानदार प्रदर्शन किया.
हाइलाइट्स
- फिल्म ‘छावा’ ने 800 करोड़ से ज्यादा की कमाई की.
- लक्ष्मण उटेकर के निर्देशन में बनी सबसे बड़ी हिट फिल्म.
- विक्की कौशल और रश्मिका मंदाना की फिल्म को दर्शकों का बेशुमार प्यार मिला.
नई दिल्ली. विक्की कौशल और रश्मिका मंदाना की ‘छावा’ इस साल की अबतक की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म है. छत्रपति शिवाजी महाराज के बेटे संभाजी महाराज के जीवन पर बेस्ड स्टोरी को दर्शकों का बेशुमार प्यार मिला. दुनियाभर के बॉक्स-ऑफिस पर 800 करोड़ से ज्यादा की कमाई कर फिल्म ने इतिहास रच दिया. इस फिल्म को पर्दे पर बखूबी उतारने वाले डायरेक्टर लक्ष्मण उटेकर के करियर की ये सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म है. नेशनल अवॉर्ड जीत चुकी फिल्म ‘मिमी’ के डायरेक्टर के करियर में ‘छावा’ मील का पत्थर साबित हुई है. आज कमर्शियल और क्रिट्क्स द्वारा सराही गई फिल्मों के महारथी बन चुके लक्ष्मण उटेकर का फिल्मी सफर कभी भी आसान नहीं था.
आज बॉक्स-ऑफिस पर करोड़ों की बारिश करने वाले फिल्ममेकर का शुरुआती सफर काफी मुश्किलों भरा रहा. उन्होंने 6 साल की नन्ही सी उम्र में काम करना शुरू किया था. डायरेक्टर महज 6 साल के थे जब वो अपने चाचा के साथ पहली बार मुंबई आए थे. नन्ही सी उम्र में वो जिम्मेदारियों के बोझ तले दब गए थे.
कभी बेचते थे वड़ापाव
मामा काउच पॉडकास्ट पर शिरकत करने के दौरान डायरेक्टर लक्ष्मण उटेकर ने कहा कि वो 6 साल की उम्र में बार के सामने खड़े होकर उबले अंडे बेचते थे और फिर उन्होंने बड़ापाव की अपनी दुकान लगाई थी जिसे बीएमसी के लोगों ने उजाड़ दिया था. वो कहते हैं, ‘मैंने पहले एक वड़ा पाव का स्टॉल शिवाजी पार्क में खोला था, लेकिन बीएमसी ने उसे जब्त कर लिया’. उन्होंने आगे बताया कि गणपति उत्सव के दौरान, कई अमीर लोग अपनी कारों से बाहर निकलकर खुद मूर्ति का विसर्जन नहीं करना चाहते थे. वो कहते हैं वो और उनके दोस्त ने उन्हें यह सेवा प्रदान की, जिसमें वे उनकी मूर्तियों को ले जाकर विसर्जित कर देते थे और इसके बदले पैसे कमाते थे. वे इस सेवा के लिए 5 रुपये चार्ज करते थे और इसे आपस में बांट लेते थे’. उटेकर ने कहा कि वे अमीर लोगों की कारों का पीछा करते थे और उन्हें मूर्ति विसर्जन की सेवा की पेशकश करते थे.
फिल्म स्टूडियो में धोते थे टॉयलेट
फिल्म इंडस्ट्री में अपनी शुरुआत के बारे में वो कहते हैं कि उन्हें इंडस्ट्री में एंट्री अखबार में एक नौकरी से मिला. वो कहते हैं कि उन्हें पहला काम फिल्म स्टूडियो में सफाईकर्मी के रूप में काम मिल गया. वो कहते हैं, ‘मैंने उनके लिए सफाईकर्मी के रूप में काम करना शुरू किया, और मुझे वास्तव में समझ में नहीं आया कि वे क्या काम कर रहे थे. मैं फर्श और टॉयलेट साफ करता था, उसके बाद मैं साउंड और एडिटिंग स्टूडियो में काम करने वाले लोगों के लिए चाय लाता था. मैंने उनके काम को देखा और महसूस किया कि जो भी काम वे कर रहे थे, वह बहुत दिलचस्प था, और मैं कई दिनों तक वहां से जाता नहीं था; मुझे कभी बोरियत महसूस नहीं हुई.
फिल्म स्टूडियो का टॉयलेट साफ करने और एडिटिंग के लोगों को चाय सर्व करने से लक्ष्मण उटेकर का फिल्मों से पाला पड़ा. पहली ही नजर में उन्हें ये काम इतना भा गया कि उन्होंने फिल्ममेकिंग में ही करियर बनाने की ठान ली. डायरेक्टर के तौर पर लक्ष्मण उटेकर ने मिमी, जरा हटके जरा बचके, लुका छुप्पी, तेरी बातों में ऐसा उलझा जिया, कहां शरू कहां खत्म, डियर जिंदगी जैसी फिल्मों का निर्देशन कर खूबवाही बटोरी है.