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Dhesh Kanda benefits: छत्तीसगढ़ के गांवों में तालाबों से निकाला जाने वाला ढेस कांदा अब सेहत का साथी और ग्रामीणों के लिए आमदनी का साधन बन गया है. जानिए इसकी पूरी कहानी.

गर्मी के लिए सूपरफूड
हाइलाइट्स
- छत्तीसगढ़ में ढेस कांदा तालाबों से निकाला जाता है.
- ढेस कांदा गर्मी में शरीर को ठंडक देता है.
- ढेस कांदा ग्रामीणों के लिए आमदनी का साधन बन गया है.
गर्मी के लिए बेस्ट सब्जी: गर्मी के मौसम में जहां एक तरफ लू चलती है, पसीना बेहिसाब बहता है वहीं दूसरी ओर कुछ पारंपरिक खाद्य पदार्थ ऐसे हैं जो न केवल शरीर को ठंडक देते हैं, बल्कि स्वाद और सेहत दोनों का बेहतरीन मेल साबित होते हैं. छत्तीसगढ़ का ‘ढेस कांदा’ ऐसा ही एक अनोखा भोजन है, जो आज ग्रामीणों के लिए आमदनी का साधन बन चुका है और शहरी रसोईघरों तक अपनी पहचान बना चुका है.
तालाब से निकलती है रोज़गार की लहर
सीपत चौक (बिलासपुर) के रहने वाले कृष्ण मरकाम हर सुबह गांव के तालाब में उतरकर कमल की जड़ों से ढेस कांदा निकालते हैं. यह मेहनत उनकी आमदनी का ज़रिया है. रोज़ वे 20 से 30 किलो ढेस कांदा बाजार में बेचते हैं और ₹300 से ₹400 की कमाई कर लेते हैं. यह सब्ज़ी ₹40 प्रति किलो बिकती है और हर दिन पूरी बिक जाती है.
बाजार में बढ़ रही मांग, ऑर्डर पर पहुंचा रहे घर
कृष्ण मरकाम कहते हैं कि अब ग्राहक सीधे ऑर्डर देकर ढेस कांदा घर मंगवा रहे हैं. इसकी लोकप्रियता अब गांव की सीमाओं से निकलकर शहरों की रसोई में जगह बना रही है. उनका मानना है कि अगर राज्य सरकार या स्थानीय निकाय कमल की खेती को बढ़ावा दें, तो ढेस कांदा का उत्पादन भी और रोज़गार भी बढ़ेगा.
स्वाद ऐसा कि भूले नहीं भूलता
ढेस कांदा को छत्तीसगढ़ में दाल, मसाले या सूखी सब्जी की तरह पकाया जाता है. इसका स्वाद मिट्टी की महक और ताजगी से भरपूर होता है. गर्मी के मौसम में यह शरीर को प्राकृतिक ठंडक देता है और इसीलिए इसकी डिमांड मई-जून में सबसे ज्यादा रहती है.
कम लागत, ज्यादा फायदा
ढेस कांदा का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसके लिए किसी उर्वरक, बीज या सिंचाई की जरूरत नहीं. यह पूरी तरह प्राकृतिक तौर पर तालाबों में उगता है, और ग्रामीणों के लिए बिना निवेश के आय का स्रोत बन जाता है. यह स्थानीय स्वावलंबन और रोजगार सृजन का जीवंत उदाहरण है.