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Ambikapur News: छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले की आदिवासी महिलाएं खजूर की पत्तियों और कांसा घास से टिकाऊ और आकर्षक टोकरी, बैग, टोपी आदि उत्पाद बना रही हैं. यह कला अब देशभर में प्रसिद्ध हो चुकी है.

महिलाओं का कमाल बना रहीं उत्पाद
हाइलाइट्स
- महिलाएं खजूर की पत्तियों से टोकरी, बैग बना रही हैं.
- उत्पादों की मांग महाराष्ट्र, दिल्ली, तमिलनाडु में बढ़ी.
- महिलाएं आत्मनिर्भर हो रही हैं और आर्थिक रूप से सशक्त.
खजूर की पत्तियों से बना रहीं महिलाएं आकर्षक उत्पाद — टोकरी, बैग और टोपी की बढ़ी मांग, महिलाएं हो रही आत्मनिर्भर. दरअसल आदिवासी महिलाएं अब खजूर की पत्तियों से आकर्षक उत्पाद जैसे कि टोकरी, बैग और टोपी तैयार कर रही हैं. इन उत्पादों की मांग अब न केवल प्रदेश में बल्कि महाराष्ट्र, दिल्ली और तमिलनाडु जैसे राज्यों के महानगरों में भी तेजी से बढ़ रही है. महिला स्वयं सहायता समूहों द्वारा निर्मित यह हस्तशिल्प उत्पाद, उन्हें आत्मनिर्भर बना रहा है और आर्थिक रूप से सशक्त भी कर रहा है.
कोटानपानी ग्राम पंचायत के अधिकतर घरों की महिलायें द्वारा किया जा रहा है कोटानपानी ग्राम पंचायत मूलतःआदिवासी बाहुल्य क्षेत्र हैं. छिंद एवं कांसा का सामाजिक एवं सांस्कृतिक महत्व-जशपुर के आदिवासी समुदाय मे विवाह देवता पूजन, छठ पूजा आदि में छिंद कांसा का विशेष महत्व है. छिंद और कांसा घास से निर्मित टोकरी एवं उत्पाद प्राकृतिक और सांस्कृतिक प्रतीत होते हैं. वैसे छिंद कांसा टोकरी बनाने का प्रचलन लगभग 30 वर्ष पुराना है. इसके पूर्व सदियों से छिंद की चटाई बनाने का प्रचलन भारत के विभिन्न राज्यों मे व्याप्त रहा है.
आज छिंद कांसा टोकरी की पहचान सारे भारत वर्ष मे है. मुख्यमंत्री और जिला प्रशासन के सतत प्रयास से महिलायें अच्छा उत्पादन एवं विक्री कर लखपति दीदियाँ बन चुकी है. जिला प्रशासन, एनआरएलएम एवं छत्तीसगढ़ हस्तशिल्प बोर्ड के माध्यम से लगभग 15 समूह की महिलाओं को प्रशिक्षण प्रदान कर एवं 100 से ज्यादा महिलाओं को रोजगार से जोड़ा गया है. अब इन्हें इनके कार्य को सम्मान और पहचान दिलवाना है. यह टोकरी फल, पूजा सामग्री एवं उपहार सामग्री के रूप में उपयोग किया जाता है एवं आकर्षक होने की वजह से इसकी मांग जोरों पर है. फ्लाउअरिंग हो जाएगा जो किसी काम का नहीं रहेगा. कांसा घास का उपयोग घाँस को सम्मिलित कर बेलनाकार बनाकर टोकरी को गोल नुमा आकार एवं मजबूती प्रदान करने के लिए होता है. छिंद की पत्तियों से कांसा के ऊपर लपेटकर आकर्षक रूप दिया जाता है. अन्यथा इन्हे ग्रामीणों से छिंद और कांसा दोनों प्रति किलोग्राम 150 रुपये के दर से खरीदा जाता है.

Anuj Singh serves as a Content Producer for Local 18 at News18, bringing over one years of expertise in digital journalism. His writing focuses on hyperlocal issues, Political, crime, Astrology.He has worked as…और पढ़ें
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