Explained : क्या है RIC अलायंस, कब अस्तित्व में आया, फिर जिंदा करने में क्यों जुटा रूस, कैसे अमेरिका होगा बेचैन?

रूस 2020 के बाद पहली बार खुले तौर पर RIC यानी रूस-भारत-चीन के ट्रोयका को दोबारा जिंदा करने की कोशिश में जुट गया है. रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने 29 मई को पर्म शहर में एक सुरक्षा सम्मेलन में बोलते हुए कहा कि RIC बैठकों को फिर से शुरू करने का ‘समय आ गया है’.

बीते कई वर्षों से अंतरराष्ट्रीय राजनीति में बहुध्रुवीय व्यवस्था की चर्चा तेज हुई है, जिसमें रूस और चीन मिलकर पश्चिमी देशों और खासकर अमेरिकी प्रभुत्व को संतुलित करने की कोशिश में जुटे हैं. रूस, भारत और चीन के इस ट्रोयका को दोबारा शुरू करने की बात इसी कड़ी का हिस्सा मानी जा रही है. यह इस बात का भी संकेत है कि वैश्विक कूटनीति के मानचित्र पर नई हलचल शुरू हो चुकी है.

RIC क्या है और कब अस्तित्व में आया?

RIC की अवधारणा 1990 के दशक के अंत में रूस के पूर्व प्रधानमंत्री येवगेनी प्रिमाकोव ने दी थी. इसका मकसद था एक ऐसा मंच तैयार करना जो अमेरिका और पश्चिमी देशों के एकध्रुवीय वैश्विक व्यवस्था को संतुलित कर सके. तीन देशों के इस समूह ने 2002 से लेकर 2020 तक 20 से अधिक बार मंत्री-स्तरीय बैठकें कीं. इसमें विदेश नीति के अलावा आर्थिक, व्यापारिक और सुरक्षा मामलों पर भी समन्वय स्थापित करने का प्रयास हुआ.

हालांकि, 2020 में भारत-चीन सीमा पर गलवान घाटी संघर्ष के बाद यह मंच लगभग निष्क्रिय हो गया था.

RIC को दोबारा शुरू करने पर अब क्यों जोर?

अक्टूबर 2024 में कज़ान में हुए ब्रिक्स सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच बातचीत के बाद सीमा पर तनाव कम करने की दिशा में कदम बढ़े हैं. रूस इसी माहौल को आधार बनाकर RIC को फिर से एक्टिव करना चाहता है.

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रूस खुले तौर पर यह मानता है कि नाटो और क्वाड जैसे पश्चिमी गठजोड़ एशिया में अस्थिरता फैला रहे हैं. लावरोव ने आरोप लगाया कि नाटो भारत को चीन विरोधी रणनीति में घसीटने की कोशिश कर रहा है. RIC ऐसे में एक ऐसा मंच बन सकता है जो क्षेत्रीय मुद्दों का एशियाई समाधान पेश करे, न कि पश्चिमी एजेंडे के अनुसार.

रूस का दीर्घकालिक एजेंडा है एक ऐसा सुरक्षा ढांचा तैयार करना, जिसमें अमेरिका-नीत संस्थाओं पर निर्भरता न हो. RIC के दोबारा खड़े होने से यूरेशिया में बहुध्रुवीय संतुलन की संभावना को बढ़ावा मिलेगा.

अमेरिका क्यों होगा बेचैन?

अमेरिका भारत को अपने इंडो-पैसिफिक प्लान का एक प्रमुख स्तंभ मानता है. अगर भारत RIC में सक्रिय भूमिका निभाता है, तो यह संकेत होगा कि भारत अब पश्चिम पर निर्भर नहीं है.

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RIC के पुनर्जीवित होने से चीन और रूस के बीच पहले से गहरे होते संबंधों को एक कूटनीतिक मंच मिलेगा, जिससे अमेरिकी नीति-निर्माताओं के लिए चुनौती खड़ी होगी.

क्वाड और इंडो-पैसिफिक रणनीति को झटका

अगर भारत RIC के जरिए चीन और रूस के साथ बातचीत और सहयोग को बढ़ाता है, तो इससे क्वाड की प्रभावशीलता पर सवालिया निशान लग सकता है. क्योंकि भारत एक-साथ दोनों पाले में बैठा नहीं दिख सकता.

हालांकि, भारत के लिए यह राह इतनी आसान नहीं है. एक ओर वह क्वाड और अमेरिका के साथ मजबूत संबंध बनाए रखना चाहता है. वहीं दूसरी ओर RIC जैसे मंचों में उसकी भागीदारी उसकी रणनीतिक संतुलन नीति का हिस्सा है. साथ ही, भारत-चीन सीमा विवाद पूरी तरह सुलझा नहीं है, जिससे RIC की विश्वसनीयता प्रभावित हो सकती है.

RIC को दोबारा शुरू करना बस एक प्रतीकात्मक प्रयास नहीं है, बल्कि यह रूस की उस दीर्घकालिक रणनीति का हिस्सा है जिसमें वह यूरेशिया को पश्चिमी प्रभुत्व से मुक्त, बहुध्रुवीय दुनिया का केंद्र बनाना चाहता है. अगर भारत-चीन संबंधों में सुधार स्थायी होता है और तीनों देश अपने मतभेदों को पीछे रखकर साझा हितों पर ध्यान केंद्रित करते हैं, तो RIC अमेरिका के लिए एक रणनीतिक सिरदर्द बन सकता है.

RIC का दोबारा उस बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था की नींव हो सकता है, जिसकी कल्पना प्रिमाकोव ने की थी — और यही बात अमेरिका को सबसे अधिक बेचैन करती है.

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