अरविंद नेताम को RSS के मंच पर देखने-सुनने का क्‍या है संकेत? आदिवासी राजनीति में बदले समीकरण

रायपुर.  हाल ही में छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ आदिवासी नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम का राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के एक स्वयंसेवक प्रशिक्षण शिविर में मुख्य अतिथि के रूप में शामिल होना, छत्तीसगढ़ की राजनीति में एक बड़ी हलचल पैदा कर गया है. नागपुर में हुए इस कार्यक्रम में नेताम ने न केवल धर्मांतरण जैसे संवेदनशील आदिवासी मुद्दों को प्रमुखता से उठाया, बल्कि संघ के प्रयासों की सराहना भी की. यह घटना सिर्फ एक साधारण राजनीतिक मुलाकात नहीं, बल्कि छत्तीसगढ़ की आदिवासी राजनीति और चुनावी समीकरणों पर इसके दूरगामी प्रभावों को समझने के लिए एक महत्वपूर्ण विश्लेषण की मांग करती है.

अरविंद नेताम एक अनुभवी आदिवासी नेता हैं, जिन्होंने लंबे समय तक कांग्रेस में रहते हुए केंद्रीय राजनीति में अपनी छाप छोड़ी है. कांग्रेस छोड़ने के बाद उन्होंने अपनी ‘हमर राज पार्टी’ बनाई, जिसका मुख्य उद्देश्य आदिवासी समाज के हितों को सशक्त करना रहा है. उनका आरएसएस के मंच पर आना कई मायनों में महत्वपूर्ण है_ पारंपरिक रूप से, कांग्रेस और आदिवासी समाज का एक बड़ा हिस्सा आरएसएस की विचारधारा से दूरी बनाए रखता है. नेताम जैसे एक प्रमुख आदिवासी चेहरे का संघ के मंच पर जाना, यह दर्शाता है कि आदिवासी समाज के मुद्दों को लेकर अब विभिन्न वैचारिक धड़े भी एक साथ आ रहे हैं या कम से कम संवाद स्थापित कर रहे हैं. यह आरएसएस के लिए आदिवासी समुदायों के बीच अपनी पैठ बढ़ाने का एक महत्वपूर्ण अवसर है.

नेताम ने मंच से धर्मांतरण के मुद्दे को खुलकर उठाया और संघ के प्रयासों की सराहना की. यह मुद्दा छत्तीसगढ़ के आदिवासी बेल्ट में बेहद संवेदनशील और राजनीतिक रूप से ध्रुवीकरण करने वाला रहा है. भाजपा और आरएसएस लंबे समय से धर्मांतरण के खिलाफ अभियान चला रहे हैं, जबकि कांग्रेस और कुछ आदिवासी संगठन इस मुद्दे पर अलग रुख रखते हैं. नेताम का इस मुद्दे पर संघ के साथ खड़ा होना, भाजपा को आदिवासी समाज के भीतर अपनी स्थिति मजबूत करने में मदद कर सकता है, खासकर उन आदिवासियों के बीच जो धर्मांतरण के खिलाफ हैं. हाल ही में उन्होंने ‘डीलिस्टिंग’ (धर्मांतरित ईसाइयों को अनुसूचित जनजाति की सूची से बाहर करना) का समर्थन करने की बात भी कही है, जो पहले उनके स्टैंड के विपरीत था. यह एक महत्वपूर्ण बदलाव है.

छत्तीसगढ़ में आदिवासियों की आबादी लगभग 32% है और राज्य की 90 विधानसभा सीटों में से 29 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं. आदिवासी वोट बैंक किसी भी राजनीतिक दल के लिए सत्ता तक पहुंचने की कुंजी है. 2018 में कांग्रेस ने इन सीटों पर शानदार प्रदर्शन किया था, लेकिन 2023 के विधानसभा चुनावों में भाजपा ने आदिवासी सीटों पर अपनी स्थिति में उल्लेखनीय सुधार किया. नेताम का आरएसएस के मंच पर आना कांग्रेस के लिए एक और चुनौती खड़ी कर सकता है, क्योंकि यह उसके पारंपरिक आदिवासी वोट बैंक में सेंध लगाने का काम कर सकता है.

नेताम ने स्पष्ट किया है कि उन्होंने इस मंच का उपयोग अपने आदिवासी समाज के जल, जंगल और जमीन जैसे मूल मुद्दों को उठाने के लिए किया. वे यह भी कह चुके हैं कि अगर समाज का अस्तित्व खतरे में है, तो जो भी मदद करेगा, वे उससे सहायता लेंगे. यह उनकी पार्टी की रणनीतिक लचीलेपन को दर्शाता है, जहां आदिवासी हितों को सर्वोपरि रखकर वे किसी भी राजनीतिक या वैचारिक मंच का उपयोग करने को तैयार हैं. यह एक दबाव रणनीति भी हो सकती है ताकि बड़ी पार्टियां आदिवासी मुद्दों को गंभीरता से लें.

नेताम का आरएसएस से जुड़ाव भविष्य में छत्तीसगढ़ की आदिवासी राजनीति में नए समीकरणों को जन्म दे सकता है. क्या यह एक स्थायी गठबंधन का रूप लेगा, या यह केवल आदिवासी मुद्दों पर एक साझा मंच होगा, यह देखना बाकी है. हालांकि, यह घटना भाजपा के लिए आदिवासी क्षेत्रों में अपनी स्वीकार्यता बढ़ाने और कांग्रेस के लिए अपनी आदिवासी रणनीति पर फिर से विचार करने के लिए मजबूर करने वाली है.

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